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Budget and Agriculture Policy Reforms

इस बजट से एग्रीकल्चर को है बड़े बूस्टर की दरकार, आंकड़े नहीं दे रहे मोदी का साथ

Money Bhaskar |  December 26, 2017 12:10 AM IST



नई दिल्ली। देश की जीडीपी में तकरीबन 17 फीसदी की हिस्सेदारी रखने और 50%  वर्कफोर्स को रोजगार देने वाले एग्रीकल्चर सेक्टर को इस बजट से एक बड़े बूस् की दरकार है। इकोनॉमि सर्वे 2016-17 के मुताबि, एग्रीकल्चर एंड एलाइड सेक्टर में 4.1 फीसदी की ग्रोथ का अनुमान है, मगर इस सेक्टर की रीढ़ यानी किसान के हालात सुधरते नहीं दि रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दोगुनी आय की घोषणा किसानों को अब सपना नजर आने लगी है। कम एमएसपी, मानसून की मार, लोन का बोझ और बाजार तंत्र ने किसान की इनकम दोगुनी करने के रास्ते को बहुत संकरा कर दिया है। महज 6000 रुपए की औसत मासि इनकम पाने वाले किसान को इस बजट से बड़े बूस् की बहुत दरकार है, नहीं तो यह स्थिति ऐसी ही रहेगी।

एग्री एक्सपोर्ट में 21% की गिरावट आई
विश् स्तर पर भारतीय एग्रीकल्चर अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रहा है। वर्ष 2016-17 में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट गिरकर 33.87 अरब डॉलर गया जो 2013-14 में 43.23 अरब डॉलर था। वहीं एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स के आयात का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2013-14 में यह 15.03 अरब डॉलर था जो 2016-17 में बढ़कर 25.09 अरब डॉलर हो गया। एक्सपोर्ट बढ़ने से घेरलू बाजार में एग्री प्रोडक् के दाम कंट्रोल रहते हैं और बहुत नीचे नहीं जाते। इसका फायदा किसानों को होता है।

जीवीए में आई गिरावट
साल 2017-18 की सेकंड क्वार्टर में मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग, इंडस्ट्री, रिएल एस्टेट सहि अन् सभी सेक्टरों के जीवीए यानी ग्रॉस वैल्यू एडेड में बढ़ोतरी हुई मगर एग्रीकल्चर सेक्टर में गिरावट दर्ज की गई है। पहली तिमाही के मुकाबले इसमें 0.6 फीसदी की गिरावट दि रही है। जहां पहले क्वार्टर में 2.3% की ग्रोथ दर्ज की गई थी वहीं दूसरे क्वार्टर में यह गिरकर 1.7% गई।

महज 6426 रुपए है किसान की मासि आय
एनएसएसओ के 70वें राउंड के मुताबि, भारत में किसान परिवार की औसत मासि आय 6426 रुपए है। जबकि आज के दौर में सरकारी विभाग के चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी भी 15-20 हजार रुपए महीना कमाता है। वर्ष 2012-13 के आंकड़ों के मुताबि, पंजाब के किसानों की औसत मासि आय 18059 है जो देश में सबसे ज्यादा है और बिहार के किसान की मासि आय 3558 रुपए है।

आय दोगुनी करने के लि चाहि 6,399 अरब का निवेश
वर्ष 2022-23 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लि हमें पब्लि और प्राइवेट दोनों सेक्टरों की ओर से 6399 करोड़ रुपए के अतिरिक् निवेश की जरूरत होगी। अभी असम, केरल, उत्तर प्रदेश, मध् प्रदेश, बिहार, पश्चि बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान, पंजाब और उड़ीसा में पब्लि इनवेस्टमेंट देश के औसत से कम है। किसानों की आय को दोगुना करने के लि सरकार ने जो कमेटी बनाई है उसकी रिपोर्ट के मुताबि, हर साल 10.41 फीसदी आय बढ़ाने के लि प्राइवेट इनवेस्टमेंट में 7.86 फीसदी की बढ़ोतरी जरूरी है। खेती, सिंचाई, सड़कें और ट्रांसपोर्ट और ग्रामीण इलाकों में ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश की जरूरत है। कमेटी का कहना है कि 2022-23 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लि हमें 2004-05 के रेट पर करीब 617 अरब और 2011-12 के रेट पर 1318.4 अरब रुपयों के प्राइवेट इनवेस्टमेंट की जरूरत है।

12,686 अरब रुपए का लोन
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब करीब 77 हजार करोड़ रुपए का लोन माफ कर चुके हैं। मई 2017 तक के आंकड़ों के मुताबि, कुल कृषि लोन तकरीबन 12686 अरब रुपए है। रिजर्व बैंक पहले ही इस बारे में चेतावनी दे चुका है। बैंक का कहना है कि लोन माफ करने से राज्यों की वित्तीय स्थिति डगमगा सकती है और इससे महंगाई बढ़ सकती है। एक अनुमान के मुताबि, अगर सभी राज् किसानों का आधा कर्ज भी माफ कर देते हैं तो यह जीडीपी का 4 फीसदी तक बैठेगा। लोन माफी वैसे भी फौरी राहत ही दे पाता है, इससे किसान का भला नहीं हो पाता।

नहीं मिलती उपज की सही कीमत
एग्री मार्केट एक्सपर्ट विजय सरदाना का कहना है कि यह किसान और कंज्यूमर दोनों के लि यह स्थिति ठीक नहीं है। क्रॉप आउटपुट का रियलाइजेशन पहले के मुकाबले कम हो गया है। इनफ्लेशन बढ़ रहा है और उपभोक्ता ऊंची कीमतों पर चीजें खरीद रहा है मगर किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत नहीं मि रही, यानी दोनों ही घाटे में हैं। वहीं इसका फायदा उठा रहे हैं मिडलमैन, जि पर सरकार का कोई कंट्रोल नजर नहीं रहा है।
सरदाना कहते हैं, सीधी सी बात है अगर मार्केट में किसी कृषि उत्पाद या उस कृषि उत्पाद से बनी कोई चीज ऊंचे दामों पर मि रही है मगर किसान को सही कीमत नहीं मि रही तो सारा फायदा बीच में मौजूद लोग ले जा रहे हैं। ऐसी कंडीशन में किसानों के हितों की रक्षा करना सरकार का काम है, जिसे सरकार नहीं कर रही है। 

Important: India badly need Agriculture Marketing Reforms Bill in line with tax reforms bill i.e. GST to remove state level barriers in agriculture produce marketing. It should be 'One Nation- One Market' Concept. In WTO, we want to make world as one market, but can't do anything with our own country. Who will take us seriously in world market? Think about it.

गांवों को चाहि फैक्ट्री

भारतीय किसान यूनियन के महासचि धर्मेंद्र मलि के अनुसार, अगर सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे फूड प्रोसेसिंग से जुड़ी फैक्ट्रियां गांवों में जाएं तो किसान अपनी उपज फेंकने को मजबूर नहीं होगा। यूपी में किसान कोल् स्टोर से आलू उठाने को तैयार नहीं है क्योंकि बाजार में रेट इतना नीचे गया है कि माल की ढुलाई और कोल् स्टोर का किराया भी नहीं निकल पाएगा। जबकि बाजार में आलू के चिप्स की कीमत आज भी वही है। वही फैक्ट्री जो नोएडा या दूसरे शहरों में लगी है अगर आगरा, कन्नौज में लगी होती तो सबको लाभ होता। 

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