फूड बिजनेस के लिए कंज्‍यूमर का कान्फिडेंस जीतना जरूरी

फूड बिजनेस के लिए कंज्‍यूमर का कान्फिडेंस जीतना जरूरी 

Source : MoneyBhaskar.com 


नई दिल्‍ली। अभी-अभी जारी आंकड़ों से साफ है कि प्रोसेस्‍ड और प्री-पैकेज्‍ड फूड की बिक्री में लगातार कमी आ रही है। कोई शक नहीं कि मैगी रीकॉल इम्‍पैक्‍ट इसके प्रमुख कारणों में एक है। साफ तौर पर फूड कंपनियों के लिए यह एक गंभीर स्थिति है। इससे यह भी साफ है कि ब्रांड से अधिक कंज्‍यूमर सरकारी एजेंसियों के निर्णय पर यकीन करते हैं। वैसे, मेरा मानना है कि प्रोसेस्‍ड और प्री-पैकेज्‍ड फुड्स की बिक्री में लगातार हो रही इस कमी के एक से अधिक कारण हैं, जिसकी चर्चा मैं इस लेख में आगे करने जा रहा हूं। 


मैगी रीकॉल की निगेटिव पब्लिसिटी सबसे बड़ा कारण

विभिन्‍न मंचों से इंडस्‍ट्री लीडर्स ने जो बयान दिए हैं, मैं उनसे अपनी बात शुरू करता हूं। प्रोसेस्‍ड फूड की बिक्री में गिरावट के लिए जो सबसे बड़ा कारण बताया जाता है, वह है- मैगी रीकॉल की घटना के कारण प्रोसेस्‍ड फूड के बारे में हुई निगेटिव पब्लिसिटी। इससे कुछ बुनियादी सवाल पैदा होते हैं कि आखिर ये कंपनियां कंज्‍यूमर के साथ विश्‍वास कायम करने में सफल क्‍यों नहीं हुईं? क्‍यों कंज्‍यूमर अभी भी इन प्रोडक्‍ट की क्‍वालिटी पर संदेह कर रहे हैं? कंज्‍यूमर और फूड कंपनियों के बीच विश्‍वास का क्‍या है वर्तमान स्‍तर? दोनों के बीच विश्‍वास का स्‍तर इतना कम क्‍यों है जिससे महज एक घटना का असर पूरी इंडस्‍ट्री महसूस कर रही है? ये कुछ बुनियादी सवाल हैं, जिनपर इंडस्‍ट्री लीडर्स को गंभीरता से विचार करना होगा।


फूड बिजनेस के लिए बुनियादी मुद्दों का ख्‍याल रखना जरूरी

मेरे विचार से देश की फूड इंडस्‍ट्री ने विश्‍वास का वातावरण कायम करने के लिए फूड बिजनेस के बुनियादी मुद्दों का उचित ख्‍याल नहीं रखा। लेकिन अब इसके बारे में सोचने का वक्‍त आ गया है। यहां कुछ और सवालों का उठना भी स्‍वाभाविक है- जैसे, मैगी एपिसोड के बाद अमूल की बिक्री पर क्‍या असर हुआ है? दोनों शक्तिशाली ब्रांड हैं, लेकिन क्‍या दोनों समान रूप से विश्‍वसनीय हैं? इस संबंध में आप अपने पड़ोसियों, मित्रों और चाहने वालों अन्‍य लोगों से उनका विचार जान सकते हैं। मैंने मार्केट में कई सारे कंज्‍यूमर से यह सवाल पूछा और वे साफ तौर पर देसी कॉपरेटिव संगठनों के प्रोडक्‍ट खरीदने के पक्ष में दिखे। इससे एक बुनियादी सवाल पैदा होता है कि आखिर ये बड़े ब्रांड कंज्‍यूमर के बीच खुद के लिए विश्‍वास विकसित करने में क्‍यों सफल नहीं हो पाए हैं। कंज्‍यूमर क्‍यों एक ब्रांड की तुलना में दूसरे ब्रांड पर अधिक यकीन करते हैं?


फूड सैफ्टी के प्रति सजग हो गए हैं कंज्‍यूमर

यहां यह उल्‍लेख करना भी महत्‍वपूर्ण है कि कंज्‍यूमर अब फूड सैफ्टी और खाद्य पदार्थों का स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाले असर के प्रति अधिक सजग और संवेदनशील होते जा रहे हैं। कृत्रिम दूध के साथ मसाले, खाद्य तेल, मिठाइयां, दूध में मिलाई जाने वाली एं‍टीबायोटिक, मांस आदि में मिलावट, गलत लेबलिंग और गुमराह करने वाले दावों और मार्केट में उपलब्‍ध नकली उत्‍पादों ने पैकेज्‍ड फूड के बारे में सामान्‍य लोगों के विश्‍वास को हिलाकर रख दिया है। कंज्‍यूमर इन दिनों मार्केट में उपलब्‍ध फूड की गुणवत्‍ता के बारे में खुली बहस कर रहे हैं। अधिकांश नए प्रोडक्‍ट पुराने वैरिएंट के कलर और फ्लेवर में हल्‍की तब्‍दीली करके तैयार किए गए हैं। इससे ये प्रोडक्‍ट कंज्‍यूमर की बदलती जरूरतों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।


कंज्‍यूमर की उम्‍मीदों व इंडस्‍ट्री की सोच में फर्क  

एक तरफ फूड इंडस्‍ट्री खाद्य पदार्थों से जुड़े नियमों के तहत अधिक से अधिक एडिटिव्‍स की अनुमति देने की मांग कर रही है, दूसरी तरफ कंज्‍यूमर खाने के लिए अधिक से अधिक नैचुरल फूड की तलाश में हैं। इससे साफ है कि प्रोसेस्‍ड फूड के मामले में कंज्‍यूमर की उम्‍मीदों और फूड इंडस्‍ट्री के लीडर्स की सोच में गंभीर फर्क है।


तथ्‍यों को छुपाने क्रिएटिव तौर-तरीके अपनाती है इंडस्‍ट्री

यहां यह कहना उचित नहीं होगा कि फूड इंडस्‍ट्री कंज्‍यूमर की अपेक्षाओं से बिल्‍कुल अवगत नहीं है। फूड कंपनियां इनसे पूरी तरह अवगत हैं, लेकिन वे अपने लेबल से उन तथ्‍यों को छुपाने के लिए सभी तरह के क्रिएटिव तौर-तरीके अपनाते हैं, जिन्‍हें कंज्‍यूमर पसंद नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, कंपनियां खाद्य पदार्थों पर केमिकल के नाम के अलावा हर चीज लिखती हैं। ऐसा वे प्रोडक्‍ट के बारे में कंज्‍यूमर का विश्‍वास हासिल करने के लिए करते हैं। वास्‍तव में, वर्तमान फूड लॉ खुद इन तथ्‍यों को छुपाने की कंपनियों को अनुमति देता है। ऐसे में जब मैगी जैसी घटना घटती है तो कंज्‍यूमर एहतियाती कदम उठाने लगते हैं और जहां तक संभव होता है, वे प्री-पैकेज्‍ड फूड से ब‍चना शुरू कर देते हैं। आप किसी भी कंज्‍यूमर से पूछें कि वह प्री-पेकैज्‍ड फूड पसंद करता है या फ्रेश फूड, तो आपको खुद कंज्‍यूमर की पसंद के बारे में जवाब मिल जाएगा।


सोशल मीडिया ने भी कंज्‍यूमर को बनाया जागरूक

कंज्‍यूमर को जागरूक बनाने में सोशल मीडिया भी काफी महत्‍पूर्ण भूमिका निभा रहा है। किसी ब्रांड के बारे कोई निगेटिव स्‍टोरी आने पर कंपनी द्वारा प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करने से पहले सोशल मीडिया के जरिए वह स्‍टोरी लाखों कंज्‍यूमर तक पहुंच जाती है। इससे प्रोसेस्‍ड फूड के प्रति कंज्‍यूमर का कॉन्फिडेंस हिल जाता है, क्‍योंकि कोई भी अपना या अपनी फैमिली के हेल्‍थ को खतरे में डालना नहीं चाहता है।


साइकोलॉजिकल शिफ्ट को बहाल करना कठिन

यहां खास बात यह भी है कि कंज्‍यूमर किसी ब्रांड या प्रोडक्‍ट को खाना बंद करने पर उसके विकल्‍प की तरफ रुख कर लेता है। कंज्‍यूमर के जेहन में आए इस साइकोलॉजिकल शिफ्ट को फिर बहाल करना बेहद कठिन हो जाता है। इस बीच प्रतिस्‍पर्द्धी कंपनियां भी सवालों के घेरे में आए ब्रांड की मार्केट स्‍पेस को हथियाने की कोशिश करते हुए अपने प्रोडक्‍ट या ब्रांड की तरफ कंज्‍यूमर को आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। मैगी के मामले में कोई भी अन्‍य नूडल्‍स कंपनी या इंडस्‍ट्री एसोसिएशन कंज्‍यूमर को समझाने के लिए मैगी के समर्थन में नहीं उतरी। बल्कि कई कंपनियां इस संकट का पूरा फायदा लेने की कोशिश कर रही थीं। अगर ऐसा नहीं था तो कंज्‍यूमर ग्रुप से जुड़ी एसोसिएशन द्वारा बाद में कंज्‍यूमर के कॉन्फिडेंस को बहाल करने के प्रयास क्‍यों नहीं हुए।


प्रतिस्‍पर्द्धी कंपनी उठाना चाहती है फायदा

इसका मतलब है कि जब भी फूड सैफ्टी से जुड़ा कोई मामला सामने आता है तो हर कोई उस संकट का अधिकतम फायदा लेना चाहता है। दुर्भाग्‍यवश, किसी ने भी फूड सैफ्टी के बारे में कंज्‍यूमर की चिंताओं को दूर करने की कोशिश नहीं की और कोई भी फूड सैफ्टी सुनिश्‍चित करने और मिलावट से जुड़े मामलों से निपटने के लिए फूड इंडस्‍ट्री जो कुछ कर रही है, उसके बारे में कंज्‍यूमर को आश्‍वस्‍त करने के प्रति उत्‍सुक नहीं है। इससे कंज्‍यूमर का कॉन्फिडेंस और अधिक हिल जाता है और लोग उन प्रोडक्‍ट्स से दूर चले जाते हैं, जिनपर उनका यकीन नहीं होता।


फूड और हेल्‍थ बिजनेस के लिए विश्‍वास सबसे बड़ी चीज है

फूड और हेल्‍थ बिजनेस के लिए विश्‍वास सबसे बड़ी चीज होता है। मैं महसूस करता हूं कि फूड इंडस्‍ट्री और इंडस्‍ट्री एसोसिएशन को कंज्‍यूमर के विश्‍वास को फिर से हासिल करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। इस काम को महज विज्ञापनों के जरिए अंजाम नहीं दिया जा सकता है। बल्कि, इस काम को उन कंपनियों के खिलाफ एक्‍शन लेकर अंजाम दिया जाना चाहिए, जो खराब गुणवत्‍तायुक्‍त और मिलावटी उत्‍पादों की आपूर्ति करती हैं। इंडस्‍ट्री एसोसिएशन को अपने क्रियाकलापों पर फिर से विचार करते हुए उन कंपनियों को प्रतिबंधित करना चाहिए जो खाद्य कानूनों का उल्‍लंघन कर रहे हैं और कंज्‍यूमर को सेफ फूड उपलब्‍ध नहीं करा रही हैं। यहां सवाल उठना लाजिमी है कि क्‍या एसोसिएशन ऐसा करेंगी? वे ऐसा क्‍यों नहीं करेंगी, यह भी एक महत्‍वपूर्ण सवाल है? क्‍या कंज्‍यूमर उनके लिए अहम नहीं हैं?  


कीमतों का बढ़ना भी बिक्री में कमी का कारण

प्रोसेस्‍ड फूड की बिक्री में कमी के अन्‍य कारणों में इनकी कीमतों का बढ़ जाना भी एक है। ऐसे समय जब जरूरी उपभोक्‍ता वस्‍तुओं की कीमतें आम लोगों की पहुंच से बाहर हो रही हैं, उनके लिए गैर-जरूरी प्रोसेस्‍ड फूड आयटम पर खर्च करना बेहद कठिन हो जाता है। यहां यह सवाल भी उठता है कि फूड इन्‍फ्लेशन को कंट्रोल करने में इंडस्‍ट्री एसोसिएशन की क्‍या भूमिका है? जब तक फूड इन्‍फ्लेशन नियंत्रण में नहीं रहेगा, कोई औद्योगिक क्रियाकलाप ऊंचाई नहीं छू सकता।


ट्रस्‍ट बिल्डिंग एक्‍सरसाइज जरूरी

अब समय आ गया है जब फूड इंडस्‍ट्री को कंज्‍यूमर के विश्‍वास को जीतने के लिए ट्रस्‍ट बिल्डिंग एक्‍सरसाइज पर फोकस करना चाहिए। इंडस्‍ट्री को टिके रहने के लिए कंज्‍यूमर की जरूरत है। कंज्‍यूमर के पास विकल्‍प होता है, लेकिन इंडस्‍ट्री के पास विकल्‍प नहीं होता। सरकारी नीतियां नहीं बल्कि विश्‍वास एक मात्र कड़ी है जो प्रोसेस्‍ड फुड्स की बिक्री में सुधार ला सकता है। इंडस्‍ट्री इसपर विचार करे।


विजय सरदाना फूड, एग्रीकल्‍चर, रूरल, बायो-इकोनॉमी और कंज्‍यूमर अफेयर्स मामलों के विशेषज्ञ हैं।
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